युवा पीढ़ी पर फैशन का भूत

युवा पीढ़ी पर फैशन का भूत

हेलो दोस्तों कैसे है। आज हमारा ब्लॉग “युवा पीढ़ी पर फैशन का भूत” के नाम से है। फैशन का अर्थ सिर्फ पहनावे से नहीं है। जिसका मूल अर्थ है बदलाव है। हर पीढ़ी अपने साथ कुछ नया बदलाव लाती है और आज के बदलाव का मुद्दा है फैशन। और आज हम उस बदलाव को फैशन के नाम से सम्बोधित कर रहे है। आज हम सिर्फ भौतिकवादी सभ्यता के पीछे भाग रहे है मोर्डर्न बनने की कोशिश कर रहे है। जिससे हम अपनी संस्कृति और सभ्यता से दूर होते जा रहे है। आज के आधुनिक युग में यह फैशनवादी भूत युवा पीढ़ी को जकड रहा है। तो हम इसी लेख में हम युवा पीढ़ी पर बढ़ते फैशन के प्रभाव को जाने की कोशिश कर रहे है। 

आधुनिक फैशन का चलन।

20वी शताब्दी मैं जैसे ही पाश्चात्य सभ्यता का असर पड़ा। वैसे ही हमारे खान पान, रहन सहन में बदलाव आने लगा। परन्तु मुख्यः बदलाव हमारे पहनावे, शिक्षा और बोलचाल में आए। हमारे अभिनेता जो महंगे पेंट, शर्ट, कोट, टाई और जूते पहनते है। उनकी नक़ल आज का शिक्षित पुरुष वर्ग कर रहा है। वही दूसरी ओर फिल्म जगत में अभिनेत्रीया जिस प्रकार से वस्त्र पहनती है उनकी नक़ल युवतियाँ कर रही है। 

इन्ही अभिनेता और अभिनेत्रीयो के फैशन को देख कर कम्पनियाँ भी अपने उत्पाद बना रही है। फैशन शो हो रहे है। बढ़ते फैशन के प्रभाव से हमारा समाज प्रभावित हो रहा है। जिससे हमारी युवा पीढ़ी पर फैशन का भूत चढ़ गया है। जो युवा पीढ़ी के संस्कारो को प्रभावित कर रहा है।  

आधुनिक फैशन के प्रकार एवँ बदलता रूप

युवा पीढ़ी पर फैशन का भूत

आधुनिक समय में फैशन के विविध रूप नजर आते है। फैशन और फिल्म उद्योग के अभिनेता और अभिनेत्रियाँ जिस प्रकार का विज्ञापन करते है। उसी प्रकार युवा पीढ़ी छोटे छोटे कपड़े, नाभि तक शरीर का प्रदर्शन और सौंदर्य प्रसाधन का प्रयोग आज आम बात हो गयी है। जीवन की दैनिक क्रिया जैसे वार्तालाप, नाचना, खाना-पीना और रहन – सहन भी फैशन के हिसाब से हो गया है।

फ़िल्मो में अश्लील डांस, गाने और अभिनेत्रियों का छोटे छोटे कपड़े पहनना आज का फैशन बन गया है। युवक और युवतिया पैसो की भूख के लिए कॉल गर्ल और कॉल बॉय तक बन जाते है। यह फैशन शहरों में ही नहीं बल्कि अब तो गावों में भी फैलता जा रहा है। इस फैशन में माता-पिता, भाई-बहन, गुरु-शिष्य और समाज के रिश्तों में बदलाव आ रहा है। पुरानी  पीढ़ी इस फैशन का विरोध करती है। फिर भी युवा पीढ़ी इसे फैशन मान रहे है। यही फैशन का भूत युवा पीढ़ी के सिर चढ़ रहा है। जिससे आज युवा पीढ़ी अपनी सभ्यता और संस्कृति भूलती जा रही है।

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फैशन का भूत सिर्फ कपड़ों तक का नहीं

बहुत से लोग यह सोचते हैं कि कपड़ों के लेटेस्ट डिजाइन और स्टाइल को अपनाना ही फैशन है। लेकिन कपड़ों के अलावा चश्मे, मोबाइल फोन, पर्स, जूते से लेकर टोपी तक हर जगह आपको फैशन देखने को मिलेगा। एक समय पर फोन केवल बात करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन आज फोन एक जरूरत बन गया है। जरूरत से ज्यादा आज के समय में यह एक फैशन सिंबल बनता जा रहा है। हर कोई महंगे से महंगा फोन इस्तेमाल करना चाह रहा है। 10 हज़ार रुपये की नौकरी करने वाले युवक और युवतियां भी फैशन की होड़ में 40 से 50 हज़ार रुपए तक का फोन इस्तेमाल कर रहे है और यह फैशन इंडस्ट्री की ही देन है। केवल फोन खरीदने तक ही नहीं, इसके बाद फोन के लिए महंगे-महंगे कवर, उसके साथ हज़ारों रुपये वाले ईयरफोन्स का इस्तेमाल भी फैशन बनता जा रहा है। यही सब हाल आपको चश्मे, जूते और पर्स जैसी चीजों में देखने को मिलेगा। ये सभी एसेसरीज़ आज केवल जरूरत नहीं बल्कि फैशन बन गई है।  

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फैशन की कोई उम्र नहीं

एक समय था जब फैशन किसी उम्र के बाद ही अच्छा लगता था और एक सीमित उम्र आने पर यह थम भी जाता था। लेकिन आज के जमाने में फैशन की कोई उम्र नहीं रही है। दूध पीते बालक से लेकर मृत्यु शय्या पर लेटे हुए व्यक्ति तक हर किसी पर फैशन का भूत सवार है। बहुत छोटी उम्र से ही आजकल बच्चों को फैशन करना सिखा दिया जाता है, या फिर ऐसा कहना भी गलत नहीं होगा कि नई पीढ़ी तो माँ की कोख से ही फैशन सिखती आ रही है। 

गर्भावस्था के दौरान फोटोशूट कराना, उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करना, सब फैशन का ही कमाल है और इसका सीधा असर बच्चे पर पड़ता है। 2-3 साल के बच्चे भी आजकल समारोह में फैशन को लेकर स्टाइल दिखाते नज़र आते है।और यही बच्चे बाद में जब छोटे कपडे पहनते हैं तो माता-पिता अंग प्रदर्शन, परम्परा और संस्कृति का हवाला देके रोकने की कोशिश करते है। अब भला उन्हें ये बात कैसे समझ आ सकती है, क्यूंकि उनका बचपन तो फैशन की भेंट चढ़ गया है। फिर इसी प्रकार शरू होता है बत्तमीजी का वो सिलसिला जिसका अंत माँ-बाप से अलग होकर ही रुकता है। 

सुंदरता की परिभाषा बन गया है फैशन

इस दुनिया में भगवान द्वारा बनाया गया हर प्राणी अपने आप में सुंदर और खूबसूरत है। लेकिन शायद अब इंसानों को ईश्वर की रचनाएं भी पसंद नहीं आती। इसीलिए लोग खुद को और ज्यादा खूबसूरत दिखाने के लिए फैशन का सहारा लेने लगे है। आप अपनी दिनचर्या  में बहुत से ऐसे पुरुषों और महिलाओँ को देखते होंगे जो बिना फैशन के घर से बाहर कदम भी नहीं रखते। यहाँ तक कि आजकल तो मॉर्निंग वॉक में भी सेंट  और लिपस्टिक लगाने का चलन बन गया है। कुछ विशेष पर्व और समारोह के दौरान फैशन करना जायज़ है, लेकिन प्रतिदिन फैशन करना बिल्कुल भी उचित नहीं है। रोज़ाना फैशन से व्यक्ति की स्किन को भी काफी नुकसान पहुंचता है।अक्सर ऐसा होता है कि लड़का-लड़की एक-दूसरे को फोटो में देखकर पसंद कर लेते है। लेकिन जब असली चेहरा सामने आता है तो क्लेश और झगड़े के अलावा कुछ नहीं बचता। ऐसे में यदि आप पहले ही अपना वास्तविक फोटो भेजेंगे तो बाद में किसी प्रकार के वाद-विवाद का मौका ही नहीं मिलेगा। भगवान ने जैसा आपको बनाया है, यदि आप खुद को उस रूप में स्वीकार कर लेंगे तो शायद इस दुनिया में आपसे अधिक सुंदर व्यक्ति कोई नहीं होगा।

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अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि समय के अनुसार बदलना जरूरी है। रूढ़िवादी सोच और आधुनिकता के हिसाब से बदलना भी पड़ता है। इतना भी मत बदलो की आप अपने संस्कार ही भूल जाओ। मैं फैशन का विरोध नहीं करता हु। पर  ऐसा फैशन भी मत करो की हमारे बुजुर्ग और रिश्तों को ठेस पहुंचे। 

आप स्कूल जाते है तो पैंट शर्ट, कॉलेज जाते है तो जीन्स टी-शर्ट और विवाह में जाते है तो आप अपने पारंपरिक पहनावा अपना सकते है। जो की सभ्य तरीके का फैशन है। फैशन के भूत के हिसाब से आप थोड़ा बहुत बदलाव कर सकते है। पर फैशन के नाम पर आप अपनी सभ्यता और संस्कार समझौता नहीं कर सकते। आज विश्व मे हमारी पहचान ही हमारी सभ्यता और संस्कृति है।     

FAQ

क्या भारतीय युवा पीढ़ी बॉलिवुड का अनुसरण कर रही है?

हाँ, भारतीय युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति को बहुत सुलभ तरीके से अपना रही है। यह एक विडम्बना है की भारत खुद अपनी संस्कृति को बचने के लिए जूझ रहा है। भारतीय युवा फैशन के नाम पर अपना शरीर दिखने में जरा भी नहीं कतरते। सोचने वाली बात ये भी है की आज कल के माँ-बाप भी अपने बच्चो की इस मनमानी पर रोक-टोक नहीं लगते। वे खुद इस को बढ़ावा देते है। विडम्भना ये है की वे इसको मोर्डर्न स्टाइल कहते है और फिर इसी मोर्डर्न स्टाइल से निकली वासना और हवस को वो खुद रोक नहीं पाते। वो बच्चे जिनको उन्होंने खुद बचपन में मोर्डर्न बनाया था आज वो उनकी बात नहीं मानते। खैर इसका एक पहलु परवरिश पर भी निर्भर करता है।

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