लोहागढ़ किला(Lohagd Fort)

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वैसे तो आपने राजस्थान के अनेक अजय दुर्गो के बारे में सुना होगा, जिसे आज तक कोई नहीं जीत पाया। वे हमेशा से स्वतंत्र ही रहे है, आज हम भी ऐसे ही दुर्ग के बारे में बात करेंगे, एक ऐसा दुर्ग जिसे ना ही मुग़ल जीत पाए और ना ही अंग्रेज, उस दुर्ग का नाम है लोहागढ़ दुर्ग जिसका निर्माण रणनीतिक दृष्टिकोण से कराया गया था। 

निर्माण –   इस किले की नींव सन 1733 ईस्वी को बसंत पंचमी को महाराजा सूरजमल ने रखी थी और इसके निर्माण की जिम्मेदारी प्रधान वास्तुकार अमर सिंह को दे दी गई इस किले को बनने में 8 साल का समय लगा।

दुर्ग की सुरक्षा प्रबन्ध 

लोहागढ़ किले को बहारी आक्रमणों की सुरक्षा की दृष्टि से बनाया गया था किले की ऊंची-ऊंची बुर्ज और किले के चारों ओर बनी गहरी खाई जो 100 फिट चौड़ी और 60 फिट गहरी थी जिसे आक्रमण से पहले मोती झील और सुजानगंगा नहर के पानी से भर दिया जाता था। आक्रमण के दौरान इस 100 फिट चौड़ी इस खाई में मगरमच्छो और जहरीले सर्पो को छोड़ा जाता था, युद्ध के समय उन्हें खाना भी नहीं दिया जाता था। जिससे वह भूखे रहते थे और जब शत्रु सैनिक खाई के पास आते तो उन्हें खा जाते। इन मगरमच्छो के कारण सैनिक खाई पार नहीं कर पते थे। 

मिट्टी की दीवार से सुरक्षा

आपको बता दे, की इस किले की दोहरी दीवार हमले के समय बहुत सहायक होती थी। इस किले की दीवारों से टकराकर तोपों के गोले बारूद भी बेअसर हो जाते थे। इस दुर्ग के निर्माण में इसकी सुरक्षा बेहद ध्यान रखा गया सबसे पहले एक चौड़ी और मजबूत चुने और पत्थर की ऊंची दीवार बनाई गयी। और उसके बाद इसके चारो ओर मिटटी की दीवार बनाई गई जिससे बारूद का असर न हो। 

लोहागढ़ किले पर हुए आक्रमण 

लोहागढ़ किले पर मुग़लों और अंग्रेज़ों ने कुल 17 बार आक्रमण किये, जिसमे से चार आक्रमण अंग्रेज़ों ने एक बड़ी फौज के साथ किये। जिसमे उन्होंने किले का घेराव किया था। सन 1805 में ब्रिटिश जनरल लार्ड लेक ने दूसरी बार एक बड़ी फौज के साथ किले पर आक्रमण किया। उसने काफी दिनों तक क़िले में घुसने की अनेक बार कोशिशें की, परन्तु वह असफल रहा। इस दौरान अंग्रेजो के करीब तीन हज़ार सैनिक मारे गए। और सैनिकों की मौत देखकर उनका मनोबल गिर गया। और लॉर्ड लेक ने मजबूर होकर महाराजा के पास संधि प्रस्ताव भेजा। 

दिल्ली के दरवाजे लोहागढ़ किले में

किताबो में ‘भरतपुर का इतिहास’ रामवीर सिंह वर्मा ने लिखा था। कि 1765 में महाराजा जवाहर सिंह का शासन था। तब किले पर दिल्ली में राज था, महाराजा जवाहर सिंह ने दिल्ली पर आक्रमण कर दिया। और नजीबुद्दौला दिल्ली के लाल क़िले को छोड़कर भाग गया। और उस वक्त दिल्ली के लाल क़िले में अष्टधातु के दो दरवाजे लग रहे थे और महाराजा जवाहर सिंह उन्हें उखाड़कर भरतपुर ले आए। इन दरवाजों का भी इतिहास रोचक है। अलाउद्दीन खिलजी ने जब 1303 चित्तौड़गढ़ पर जब हमला किया था, और रानी महारानी पद्मिनी ने जौहर कर लिया था। तब  खिलजी ने क्रोधित होकर आपने सेनिको को कत्लेआम का हुक्म दे दिया और महारानी के महल में लगे अष्टधातु के दरवाजों को उखाड़कर दिल्ली लेकर आ गया और लाल क़िले में लगवा दिए। 

इतिहासकार बताते हैं कि महाराजा जवाहर सिंह जब युद्ध जीतकर दोनों दरवाजे के साथ लोहागढ़ लौटे, तो दरवाजो का भव्य स्वागत करवाया। और चित्तौड़गढ़ के महा राणा को सूचना भेजी कि वे रानी पद्मिनी के गौरव को ले जा सकते हैं। बताते हैं कि कई दिनों तक चित्तौड़गढ़ कुछ सन्देश न मिलने पर महाराजा जवाहर सिंह ने उन दरवाजो को लोहागढ़ क़िले में लगवाने का फैसला लिया। 

सम्बंधित पोस्ट : भानगढ़ किले 

भरतपुर शासको की पीडियाँ

  • महाराजा बदन सिंह (1722-1756)- डीग, भरतपुर के संस्थापक महाराजा बदन सिंह को 23 नवंबर 1722 को जयपुर महाराजा जय सिंह द्वितीय ने बृजराज की उपाधि दी, उन्होंने ही डीग में रॉयल पैलेस, गार्डन और वृंदावन के समीर एक-एक घाट पर मंदिर का निर्माण करवाया। उन्होंने कामवन में से ‘रानी देवकी’ सहित 25 रानियों से विवाह किया, और उनसे उनके 26 बेटे थे। 7 जून 1756 को डीग में महाराजा बदन सिंह का निधन हो गया।
  • महाराजा ब्रजेन्द्र सूरजमल (1756–1763)- महाराजा सूरजमल का पूरा नाम ब्रजेन्द्र सूरजमल था। उनका जन्म 13 फरवरी 1707 को हुआ था। इनकी 14 पत्नियाँ थी। महाराजा सूरजमल इस वंश में सबसे प्रतापी राजा हुआ। जिन्होंने मुगलों, और अफगानों से काफी युद्ध किये। इतिहारकर बताते है की इन्होंने अपने जीवन में 80 युध्द लड़े और 80 के 80 युध्द जीते थे इन्होने अपनी सीमाओं का काफी विस्तार किया। और इनका देहांत 25 दिसम्बर 1763 को हुआ।  
  • महाराजा जवाहर सिंह (1763–1768)- महारानी गंगा और महाराजा ब्रजेंद्र सूरजमल के पुत्र महाराजा जवाहर सिंह भरतपुर के तीसरे राजा बने। इन्होंने एक बार दिल्ली पर आक्रमण किया और लाल किले के दरवाजो को उखाड़कर भरतपुर किले में लाकर लगा लिया। वो दरवाजे लोहागढ़ दुर्ग में आज भी लगे हुए है। महाराजा जवाहर सिंह की हत्या 1768 को आगरा में हुई। 
  • महाराजा रतन सिंह (1768–1769)- महारानी गंगा और महाराजा ब्रजेन्द्र सूरजमल का दूसरा पुत्र भरतपुर का चौथा महाराजा बना। और एक विवाह के कलह के कारण एक छोटे शासनकाल में ही उनकी हत्या कर दी गई। 
  • महाराजा केशरी सिंह (1769–1771)- महाराजा केशरी सिंह भरतपुर के 5 वें महाराजा  बने और इनका देहांत 1776 में हुआ। 
  • महाराजा नवल सिंह (1771–1776)- रानी कावरिया और महाराजा सूरजमल के पुत्र नवल सिंह को भरतपुर का 6 राजा बनाया गया, और 1776 में उनका देहांत हो गया।  
  • महाराजा रणजीत सिंह (1776-1805)- रानी खेत कुमारी और महाराजा सूरजमल के पुत्र भरतपुर के 7 वें महाराजा बने, उनके शासनकाल के समय, नजफ खान ने, लोहागढ़ किले को छोड़कर उसके आप-पास के क्षेत्र अपनी सभी संपत्ति को जाटों से छीन लिया। 1782 में नजफ खान की मृत्यु के बाद नौ लाख में महाराजा सिंधिया ने जो कुछ बचा था, वो सब वापस ले लिया। 
  • महाराजा रणधीर सिंह (1805-1823)- ये भरतपुर के 8 वें महाराज बने, और 1823 में इनका देहांत हो गया। 
  • महाराजा बलदेव सिंह (1823-1825)- बलदेव सिंह 1823 को भरतपुर के 9 वें शासक बने। तथा इनका देहांत 1825 में हो गए। 
  • महाराजा दुर्जन साल (1825–1826)- ये भरतपुर के 10 वें महाराजा बने, जब अंग्रेजो ने लोहागढ़ किले को तीन सप्ताह के लिए घेराबंदी किया था, और तीन सप्ताह बाद भरतपुर किले पर 18 जनवरी 1826 को लॉर्ड कोम्बरेमरे का अधिकार हो गया, और महाराजा को इलाहाबाद जेल में भेज दिया गया।
  • महाराजा बलवंत सिंह (1826–1853)- महाराजा बलवंत सिंह का जन्म 1819 में हुआ था, और ये भरतपुर के 11 महाराजा बने। और 1853 में इनका स्वर्गवास हो गया। 
  • महाराजा जशवंत सिंह (1853-1893)- ये भरतपुर के 12 वें महाराजा बने, और इनका जन्म  1 मार्च 1851 को हुआ था, उनके शासनकाल के दौरान भरतपुर ने 1857 की क्रांति में ब्रिटिश सरकार को सहायता प्रदान की और भरतपुर के आसपास के इलाको में शांति व्यवस्था बनाए रखी। 
  • महाराजा राम सिंह बहादुर जंग (1893-1900)- ये भरतपुर के 13 वें महाराजा बने। इनका जन्म 9 सितंबर 1872 को लोहागढ़ किले मु हुआ। और इनकी मृत्यु सन 1900 में हुई। 
  • लेफ्टिनेंट कर्नल।श्री महाराजा श्री ब्रजेन्द्र महाराजा किशन सिंह बहादुर जंग, 1900-1929, ये भरतपुर के 13 वें महाराजा बने, और इनका जन्म 4 अक्टूबर 1899 में हुआ था। और इनका निधन 27 मार्च 1929 को हुआ। 
  • कर्नल श्री महाराजा ब्रजेन्द्र सवाई वृजेन्द्र सिंह बहादुर जंग (1929-1947)- ये भरतपुर के 14 वें महाराजा बने। इनका जन्म 19 दिसंबर 1918 को हुआ था। इनकी मिर्त्यु 8 जुलाई 1995 को हुई।