हिन्दू धर्म के प्रतिक चिन्ह 

सनातन धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म माना जाता है। जिसकी रचना स्वयं ब्रह्मा जी ने आज से लगभग 38,92,000 वर्ष पहले की थी। हिन्दू धर्म का आधार शास्त्रों को माना गया है। जिसमे बताया गया है की चार युग होते है- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग जिसमे सतयुग लगभग 17 लाख 28 हजार वर्ष, त्रेतायुग 12 लाख 96 हजार वर्ष, द्वापर युग 8 लाख 64 हजार वर्ष और कलियुग 4 लाख 32 हजार वर्ष का बताया गया है। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म त्रेतायुग में और भगवन श्रीकृष्ण का जन्म द्वापरयुग में हुआ था। सनातन धर्म ने भारतीय संस्कृति को बनाये रखने में अहम भूमिका निभाई है।

हिन्दू धार्म के महत्वपूर्ण प्रतिक

हिन्दू धर्म के प्रतिक चिन्ह

  • स्वास्तिक के चिह्न का महत्व 
  • ॐ के चिह्न का महत्व 
  • तिलक के चिह्न का महत्व 

हिन्दू धर्म में स्वास्तिक का महत्व

स्वस्तिक का चिह्न (हिन्दू धर्म में स्वस्तिक का महत्व )

सनातन धर्म में स्वास्तिक के चिह्न को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। इस चिह्न को हिन्दू धर्म में अत्यंत शुभ माना गया है। प्राचीन काल में इसकी कल्पना कुछ ऐसे की थी, की जिसके चार समकोण भुजाएँ हो और दक्षिणावर्त या वामावर्त रूप में फैली हुई हो, ऐसी आकृति वाला चिन्ह अत्यंत शुभ है। तथा इस कल्पना को रूप 10,000 ईसा पूर्व नवपाषाण काल ​​में मिला। इस चिन्ह को घर में चंदन, कुमकुम या सिंदूर से बनाने पर ग्रह दोष दूर होतें है। ‘स्वास्तिक का चिन्ह’ घर के मुख्य द्वार के ऊपर मध्य में और बाईं और दाईं तरफ शुभ-लाभ लिखते हैं। स्वास्तिक की दोनों अलग-अलग रेखाएं गणेश जी की पत्नी रिद्धि-सिद्धि को और शुभ लाभ श्री लक्ष्मी-गणेश को दर्शाते है। 

स्वास्तिक शब्द संस्कृत भाषा की धातु स्वस्ति से बना है, जिसका अर्थ है सु का अर्थ है ‘अच्छा, और अस्तिक  का अर्थ है ‘होना या शुरुआत करना’। स्वस्ति शब्द के बारे में वेदों के साथ-साथ शास्त्रीय साहित्य में भी बार-बार आता है, जिसका अर्थ है ‘स्वास्थ्य, भाग्य, सफलता, समृद्धि’ और चिन्ह को किसी शुभ काम को शुरू करने से पहले बनाया जाता है। 

 स्वास्तिक चिन्ह का उपयोग प्राचीन सभ्यताओं द्वारा व्यापक रूप से किया जाता था। स्वास्तिक चिन्ह को ऊर्जा का स्रोत माना जाता है, ये चार तत्वों का प्रतिनिधित्व भी करता है जैसे पृथ्वी, जल, वायु, और अग्नि। स्वास्तिक चिन्ह भगवान विष्णु के एक सौ आठ प्रतीको में से एक माना जाता है।

हिन्दू धर्म में ॐ का महत्व

हिन्दू धर्म में ॐ का महत्व

ऋग्वेद और यजुर्वेद जैसे वेदों से लेकर पुराणों और उपनिषदों तक ॐ के बारे में जिक्र मिलता है। मंडूक उपनिषद में बताया गया है कि संसार में भूत, भविष्य और वर्तमान और इसके भी परेह जो हमेशा हर जगह मौजूद है, वो ॐ है। अर्थात ॐ इस ब्रह्मांड में हमेशा से है, और रहेगा।

सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार- संपूर्ण ब्रह्मांड का ज्ञान ॐ नाम के उच्चारण में छिपा है। पैराणिक मान्यताओं के अनुसार- ॐ ईश्वर के सभी रूपों का आधार रूप है, ॐ शब्द के आधार पर ही पूरा ब्रह्मांड टिका हुआ है। 

प्रतिदिन ‘ॐ’ मंत्र का मात्र एक हजार जप करने पर सम्पूर्ण मनोरथे सिद्धि हो जाती है। ॐ शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है, ‘अ’, ‘उ’ और ‘म्’ इन तीनों अक्षरों के मेल से जीव और परम् ब्रह्म की एकता का प्रतिपादन होता है। 

ॐ नाम का उच्चारण करने मात्र से ही मानसिक और शारीरिक रूप से शांति प्राप्त होती है। ॐ शब्द का उच्चारण करने से आपके जीवन से और आपके आस पास से नकारात्मकता का नाष हो जायेगा और आसपास के वातावरण में भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा है। यदि ध्यानपूर्वक सही तरीके से पूर्ण ध्यान लगाकर ॐ शब्द का जाप किया जाए तो इससे आपके जीवन में शांति और ऊर्जा का विकास होगा। 

ओम (ॐ) को अक्सर सनातन धर्म का प्रमुख प्रतीक चिन्ह के रूप में जाना जाता है। और कहा जाता है कि यह वह ध्वनि है जिससे ब्रह्मांड का निर्माण हुआ। कहा जाता है कि तीन अक्षरो से मिलकर बना ॐ शब्द मुख्य रूप से तीन प्रमुख देवताओं की त्रिमूर्ति का प्रतिनिधित्व करता हैं।  ब्रह्मा, विष्णु, और महेश। 

वैज्ञानिको के अनुसार कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक ध्वनि सुनाई देती है पर आज तक वो समझ नहीं पाये की ये क्या है। परन्तु हिन्दू धर्म ग्रंथो के बताते है की वह जो ब्रह्मांड में सुनाई देती है ‘ॐ’ की है। ॐ की ध्वनी ब्रह्मांड से सदा निसृत होती रहती है, और हमारी-आपके हर श्वास से ॐ की ही ध्वनि निकलती है। यही ध्वनि सभी जीव जंतु की श्वास की गति को नियंत्रित करती है।

हिन्दू धर्म में तिलक का महत्व 

हिन्दू धर्म में तिलक का महत्व

हिन्दू धर्म में मानव शरीर पर तिलक लगाने की परम्परा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। भारतीय संस्कृति में तिलक का एक आपना महत्व है, वेदों और उपनिषदो में भी तिलक के बारे में वर्णन मिलता है। माना जाता है कि माथे पर तिलक लगाने से मन शान्त रहता है व सकारात्मक ऊर्जा का आवेश होता है। और कुंडली बल बड़ जाता है, तथा इसमें मौजूद उग्र ग्रह भी शांत हो जाते है। 

हमें अक्सर देखने को मिलता है, की ज्यादातर लोग केवल माथे पर ही तिलक लगाते हैं। हिंदू धर्म में तीन प्रकार से तिलक लगाए जाते है, पहला- ‘वैष्णव तिलक’ दूसरा- ‘शैव तिलक’ और तीसरा- ‘शाक्त तिलक’। शास्त्रों के अनुसार मानव शरीर पर कुल आठ जगह तिलक लगाया जाती है 1. मस्तक, 2. गले, 3. दोनों कानो पर, 4. दोनों भुजाओ पर, 5. सीने पर और 6. नाभि पर। इन सभी जगह पर रोजाना तिलक लगाने से मानव जीवन से सारे कष्ट दूर हो जाते है। और मन शांत रहता है तथा परमात्मा के प्रति प्रेमभाव बढ़ता है।